सर्दियों की आहट के साथ ही मिथिला समेत बिहार के अन्य भागों में मेले शुरू हो जातें हैं | इन मेलों की शुरुआत आज से सैकड़ो साल पहले हुयी थी और आज तक यह लोगो में उत्सुकता बनाये रखने में कामयाब हैं | तो चलिए बात करतें है कुछ प्राचीन और बड़े मेले की |
1 अहिल्या स्थान का मेला
अहिल्या स्थान दरभंगा-सीतामढ़ी रेलखंड के कमतौल स्टेशन से ३ कि० मी० पश्चिम अहियारी गाँव के बीच में अवस्थित है | एक पंचांग के अनुसार इस स्थान पर , १७९२००३ वर्ष पहले , भगवान् राम ने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को श्रापमुक्त कराया था |
मिथिला के राजा छत्र सिंह ने यहाँ ३५० वर्ष पहले ११५ फीट ऊँचे मन्दिर का निर्माण किया था | वर्तमान मंदिर का निर्माण १८० वर्ष पहले दरभंगा राज के द्वारा किया था | इस मंदिर की देख रेख एवं पुजारियों का वेतन दरभंगा राज से ही मिलता था | वर्तमान समय में यह मंदिर अहिल्या स्थान धार्मिक न्यास बोर्ड के अधीन है |
यहाँ प्रतिवर्ष दो मेले आयोजित होते हैं | एक , चैत्र महीने के राम नवमी के दिन और दूसरा अगहन महीने के विवाह पंचमी के दिन | दोनों मेले में खूब भीड़ रहती है | मेले में जाने वाले लोग अपने साथ बैगन का भार ले जाना नहीं भूलते |
ऐसी मान्यता है कि देवी अहिल्या को बैगन चढाने से शरीर में होने वाले मस्से समाप्त हो जातें है |
2 सीतामढ़ी मेला
सोनपुर मेले के बाद सीतामढ़ी मेले को बिहार में दुसरा स्थान प्राप्त है | सीतामढ़ी सीता जी का जन्म स्थान है | कहा जाता है कि मिथिला में भयंकर अकाल पड़ने पर राजा जनक ने पुनौरा नामक स्थान पर स्वयं हल चलाया था | हल चलाते ही एक बच्ची धरती से उत्पन्न हुई | बच्ची को जन्म लेते ही समूचे मिथिलांचल में वर्षा होने लगी और इसके साथ ही हरियाली छा गयी | लेकिन बच्ची की जान पर बन आयी | इसलिए राजा जनक ने बच्ची को वर्षा से बचाने के लिए एक स्थान पर घास-फुश से एक मरैया (फूस की झोपड़ी) का निर्माण कराया | यही सीता मरैया कालान्तर में सीतामढ़ी के नाम से प्रसिद्द हुआ |
सीतामढ़ी में मंदिर के समीप भी प्रतिवर्ष दो मेले आयोजित किये जाते हैं | एक चैत्र महीने के राम नवमी के अवसर पर और दूसरा अगहन महीने की विवाह पंचमी के दिन | दोनों ही मेला भगवान् राम और सीता मैया के सम्मान में आयोजित होते हैं |
यहाँ भी पशु मेला लगता है जो विवाह पंचमी और राम नवमी के दिन से एक महीना तक लगता है |
3 सिमरिया घाट पर कल्पवास मेला
सिमरिया घाट पर कल्पवास मेले का आयोजन प्राचीन काल से ही होता आ रहा है | इस मेले में बिहार के विभिन्न जिलों , देश के अन्य राज्यों , पड़ोसी देश नेपाल एवं भूटान से भी श्रद्धालु आकर कल्पवास मेले में भाग लेते हैं |
यहाँ श्रद्धालु झार-फूस और कैनवास की छोटी- छोटी कुटिया बना कर एक महीने तक वास करते हैं | सुबह उठ कर दैनिक नित्य क्रिया कर्म से निवृत होकर गंगा में स्नान करके पूजा पाठ करते हैं | वे भोजन भी स्वयं पकाते हैं अथवा भंडारे में भोजन करते हैं | फिर भिविन्न शिविरों में चल रहे भगवत कथा अथवा राम लीला का आनंद उठाते हैं | ऐसा श्रद्धालु एक महीने तक करते रहते हैं |
सिमरिया कल्पवास मेला को राजकीय कल्पवास मेला दर्जा २००७ में मिल चुका है | किन्तु राजकीय मेले जैसो सुविधा नज़र नहीं आ रही हैं | ख़ास कर महिलाओं के लिए स्नान करने के बाद कपड़ा बदलने की व्यवस्था नहीं की गयी है |
4 गया का पितृपक्ष मेला
गया हिदुओं का एक पवित्र तीर्थस्थल है | प्रतिवर्ष यहाँ पितृपक्ष मेला सितम्बर माह में आयोजित होती है |
यहाँ देश- विदेश के लोग आकर अपने पूर्वजों को पिंड दान देते हैं | पिंड देते समय श्रद्धालुओं को अपने पूर्वजों की उपस्थिति का अह्हास होता है |
हिन्दू धर्मं के मान्यतानुसार , पिंड ग्रहण करने के बाद मृतक आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर लेती है |
5 सोनपुर मेला
वैशाली से ३५ कि० मी० की दुरी पर सोनपुर स्थित है | सोनपुर में गंगा और गंडक नदी की संगम स्थल है | जहाँ प्रति वर्ष विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है | यह मेला कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होकर अगले एक महीने तक चलती रहती है | कहते हैं महान सम्राट चन्द्र गुप्त मौर्य भी घोड़े और हाथियों को खरीदने इस मेले में आते थे | सोनपुर मेला उपर्युक्त सभी में सबसे बड़ा और प्राचीन मेला है |
सोनपुर मेला पशु मेला के रूप में भी प्रसिद्ध है | यहाँ विभिन्न प्रकार के पशु विक्री के लिए लाये जाते हैं | यहाँ सभी पशुओं का बाजार अलग-अलग है | जैसे – हाथी बाजार , घोड़ा बाजार , बैल बाजार , पक्षी बाजार आदि |
6 गौसा घाट मेला
गौसाघाट मेला सदर प्रखंड के खुट्बारा पंचायत में आयोजित होता है | दरभंगा शहर से गौसाघाट की दूरी मात्र पांच या छः कि० मी० पूरब दिशा की ओर है | यहाँ माघी पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ होती है | गौसा घाट कमला नदी के किनारे अवस्थित है |
यहाँ दरभंगा के अलावा समस्तीपुर , मुजफ्फरपुर , सीतामढ़ी , मधुबनी एवं पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालु आते हैं | गौसाघाट से दो कि०मी० पूरब में जीबछ नदी बहती है |
ऐसी मान्यता है कि यदि संतानहीन दम्पति एक साथ गठजोड़ कर जीबछ नदी में कार्तिक पूर्णिमा या माघी पूर्णिमा को डूबकी लगाते हैं और वहां से पति-पत्नी एक साथ गठजोड़ी कर पाँव पैदल चल कर फिर गौसा घाट में डुबकी लगाते हैं तो कमला मैया उनकी मुराद पूरी करती हैं , अर्थात उन्हें सन्तान की प्राप्ति होती है |