सम्पूर्ण मिथिलांचल में लहठी शुभ कार्यों में पहना जाता है | शादी-विवाह के मौकों से लेकर मिथिला के हर छोटे बड़े त्योहार आदि में लाह की बनी लहठी को पहनना बहुत ही शुभ माना जाता है|
मिथिलांचल में नवविवाहिता शादी के बाद कम से कम एक वर्ष तक कांच की चूड़ियों की जगह लाह की बनी लहठी ही पहनने का रिवाज रहा है|यह कुछ उसी तरह है जिस तरह बंगाल की महिलाओं में शंखा और पोला पहनने का चलन है |
मिथिला की पहचान पोखर, माछ , पान और मखान ही नहीं है बल्कि यह मधुबनी या मिथिला पेंटिंग , सिक्की कला और लहठी उद्योग के लिये भी जाना जाता रहा है |
मिथिलांचल के लहठी की लोकप्रियता
मिथिलाचल स्थित दरभंगा शहर से लगभग दो किलोमीटर दूर लहेरियासराय के पंडासराय मोहल्ले का लहठी उद्योग कभी विश्व विख्यात हुआ करता था.
पंडासराय इलाके में लहेरी समुदाय के बड़ी आबादी निवास करती है| लहेरी समुदाय से जुड़े लोग ही परंपरागत रूप से लहठी निर्माण एवं बिक्री के व्यवसाय से जुड़े हैं | इसी समुदाय के नाम पर इस इलाके का नाम लहेरियासराय पड़ा |
यहां की लहठी देश के विभिन्न राज्यों ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी थी |
लहेरियों के द्वारा बनाई गई लहठी की चमक दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और यहां तक कि सिंगापुर तक में देखने को मिलती थी| जहां लहठी उद्योग से इनकी अच्छी खासी कमाई हो जाया करती थी|
यहां की बनी लहठी धीरे-धीरे इतनी लोकप्रिय हुई कि मिथिलांचल से बाहर नेपाल, बिहार के अन्य हिस्सों के साथ-साथ दूसरे राज्यों तक अपनी छाप छोड़ दी|
बाज़ार बढ़ा किन्तु स्थानीय व्यवसाय को हुआ नुकसान
वर्तमान में यह उद्योग विलुप्त होने के कगार पर है |’लहेरियो’ की कला अब उनके साथ ही समाप्त हो रही है | इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की आर्थिक तंगी और सरकारी बेरुखी से यह व्यवसाय बंद होने के कगार पर है| कभी इस बाजार की रौनक देखने लायक होती थी, लेकिन आज बद से बदतर स्थिति में पहुच गई है|
लेहेरियासराय में लहठी का निर्माण हाथ से किया जाता है जबकि दूसरी जगहों पर अब मशीन से मैटल और फाइबर से चूड़ियों और लहठियों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है | इसका मुकाबला कम पूंजी वाले और परंपरागत शैली से निर्माण करने वाले लहेरी समुदाय के लोग नहीं कर सकते | इसलिए यहां लहठी के निर्माण का कारोबार अंतिम सांस ले रहा है |
लहठी उद्योग से लहेरी समाज के लोगों का आर्थिक विकास तेजी से हुआ था. मुख्य तौर पर शादी विवाह से लेकर मिथिला के लोक पर्वों में लहठी की अहम भूमिका होती है |
आधुनिकता की चकाचौंध में लहठी अपनी पहचान खोने लगी है.आधुनिकीकरण की मार ने यहां के कारीगरों को उद्योग बंद करने की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया है|आधुनिक प्रशिक्षण की कमी ने भी इनकी कमर तोड़ दी है |
क्यों हो रहा है नुकसान ?
आज भी जीविका चलाने के लिए लहठी बनाने में पूरा परिवार लगा रहता है, लेकिन कच्चे माल का आसानी से नहीं मिलना साथ ही कच्चे माल की कीमत आसमान छूने के कारण उद्योग पर काफी असर पड़ा है|
यहां के कारीगर उपभोक्ताओं को बेहतर डिजाइन और फैशनेबल लहठी मुहैया करवा पाने में असमर्थ हो रहे हैं|
कुछ गिने-चुने परिवार ही आज इस काम में लगे हुए हैं| इन परिवारों में परम्परागत लहठी ही बनाई जाती है|
इसके अलावा और भी बहुत से कारण हैं कि वे ज्यादा लहठी नहीं बना पाते हैं कि मशीन का मुकाबला कर सकें. फिनिशिंग में अंतर भी देखने को मिलता है | कम कीमत पर ऐसी वस्तुओं को उपलब्ध करा पाना इनके लिए संभव नहीं हो पाता | जबकि बाजारों में कई वैराइटी की लहठियां कम दामों पर उपलब्ध हैं|
जयपुरी लहठियों का अब है दबदबा
फिरोजाबाद और जयपुर की बनी लहठियों ने यहाँ के बाजार पर अपना कब्जा जमा लिया है|
लहठी उद्योग को सहारा देने के लिए सरकारी स्तर पर मदद की भी कमी देखने को मिल रही है|
ऐसे में नई पीढी के लोगों का इस व्यवसाय से मोहभंग हो चुका है| वे ज्यादा मुनाफा वाले रोजगारों को अपनाना पसंद कर रहे हैं न कि परंपरागत पारिवारिक व्यवसायों को|
लहठी उद्योग की घटती लोकप्रियता से परेशान लहेरी समुदाय के लोगों ने सरकार का ध्यान इस ओर खींचने की कोशिश की थी लेकिन स्थिति जस की तस है | इसमें कोई बेहतर बदलाव नहीं आया है |बल्कि धीरे—धीरे इसका पतन ही होता जा रहा है |मिथिलांचल के जो लोग पारंपरिक तौर पर इसका इस्तेमाल करना पसंद करते थे, उनकी रूचियों में भी बदलाव आया है |आधुनिक चमक—दमक वाली चीजों के प्रति लोगों का स्वाभाविक रूप से रूझान बढ़ा है|
बिहार सरकार द्वारा प्रोत्साहन की जरुरत
बिहार सरकार की ओर से अगर इन्हें प्राणवायु नहीं मिल पाई तो लहेरियासराय की लहठी बस अतीत की वस्तुभर बनकर रह जाएगी.
प्रदेश सरकार को राजस्थान सरकार से सीख लेनी चाहिये | राजस्थान सरकार के मदद के कारण ही राजस्थानी शिल्प कला की धमक पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है| अगर बिहार सरकार भी ठान ले तो बिहार की यह अनूठी कला भी अनंत काल तक अपनी पहचान को कायम रख पाएगी. बिहार सरकार को भी ऐसी चीज़ों के संरक्षण को अपनी प्राथमिकता में शामिल करनी चाहिए |